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लेखनी कहानी -01-Jun-2023 कातिल कौन

भाग 16 
अदालत में अपने "भगवान" को केस सुलझाते हुए देखने की चाहत मीना की भी थी । हीरेन को वह अपना भगवान ही मानती थी । वह भी चाहती थी कि हीरेन दा को दलीलें प्रस्तुत करते हुए वह देखे । बालों को झटक कर उनमें उंगली फिराकर और एक मुस्कान से सामने वाले को ध्वस्त करते हुए वह हीरेन को देखें । होठों को गोल गोल कर सीटी बजान हुए उसे देखे । पर क्या अदालत में सीटी बजाई जा सकती है ? अदालतों का भी एक प्रोटोकोल होता है जिसका पालन हर किसी को करना अनिवार्य है । पर बिना सीटी बजाये हीरेन दा एक मिनट भी नहीं रह सकते हैं, यह बात वह जानती थी । पर,यहां यह कैसे संभव होगा ? और घड़ी घड़ी में गाना गुनगुनाने की उसकी आदत का क्या होगा ? चलो, आज अच्छा मौका है , जाकर देख ही आते हैं कि उसके "भगवान" अपनी सम्मोहिनी शक्ति से कैसे लोगों को अपने वश में कर लेते हैं ? इसीलिए मीना भी अदालत पहुंच गई और एक खाली सीट पर बैठ गई । 

अभी तक हीरेन दा आए नहीं थे । सक्षम, अनुपमा और अक्षत को उसकी अनुपस्थिति से घबराहट होने लगी थी कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि हीरेन दा सामने वाले वकील से मिल गया हो ? आजकल किसी के दीन ईमान का कुछ पता नहीं है । कभी कभी तो ऐसा होता है कि वकील किसी और का होता है और पैरवी किसी और की कर देता है । वकीलों का कुछ बिगड़ता भी नहीं है क्योंकि नीचे से लेकर ऊपर तक सभी जज वकीलों में से ही बनते हैं । डी जे के लिए तो एक परीक्षा होती है मगर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का जज तो सुप्रीम कोर्ट के जजों की मरजी के आधार पर ही बनते हैं । यह एक अद्भुत व्यवस्था है भारतीय न्यायपालिका की । यूं भी कह सकते हैं कि संसार की सबसे अनूठी प्रणाली है यह जिसमें एक जज ही दूसरे जज को नियुक्त कर देते हैं और उस मीटिंग के मिनिट्स भी नहीं बनते हैं । इसका असर यह होता है कि जजों को मनमर्जी करने का पूरा अधिकार मिल जाता है । उनके भ्रष्टाचार की जांच नहीं हो सकती है उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई केवल सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ही कर सकते हैं और कोई नहीं । जजों पर कोई अंकुश नहीं है । उनकी संपत्ति की कोई सूचना सार्वजनिक नहीं होती है । आज वकील जाति सबसे अधिक बदनाम जाति बन गई है । लोग वकीलों के बच्चों से अपने बच्चों का विवाह करने में घबराते हैं । फिर भी वकीलों को अभी भी अक्ल नहीं आई है और वे इसमें कोई सुधार करना नहीं चाहते हैं । 

सक्षम ने अनुपमा की ओर देखा । अनुपमा ने भी सक्षम की ओर देखा । सक्षम की आंखों में अनुपमा के लिए तिरस्कार के भाव थे । "क्या कमी रह गई थी उसके प्यार में" ? जैसे उसका मन रो रहा था और उसके अंदर से हूक सी उठ रही थी । बार बार उसके दिमाग में एक ही गाना चल रहा था 
"जिसके लिए सबको छोड़ा 
उसी ने मेरे दिल को तोड़ा 
ओ बेवफा , ओ बेवफा 
किसी और के साजन की सहेली हो गई" 

अनुपमा की आंखों में आंसू अवश्य थे पर वहां अपराध बोध नहीं था । जैसे वह कह रही हो "तकदीर का फसाना , जाकर किसे सुनाऐं।  इस दिल में जल रही हैं अरमानों की चिताऐं" ।। पर उसकी भावनाओं को समझने वाला कौन था वहां ? इतने दिनों के बाद दोनों ने एक दूसरे को देखा था मगर न कोई दुआ सलाम और न कोई बातचीत । कितने गैर से हो गये थे दोनों ? 
"ना तुम बेवफा थे ना हम बेवफा हैं 
मगर न जाने क्यों दोनों खफा हैं" ? 

अनुपमा बहुत कुछ कहना चाहती थी पर अदालत में कैसे कहती ? उसके दिल से रह रहकर आवाजें आ रही थी 
"दिल की आवाज भी सुन 
मेरे फसाने पे ना जा 
मेरी नजरों की तरफ देख 
जमाने पे ना जा" 
काश ! उसकी बात पर सक्षम विश्वास करता तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता ? अब उसे कैसे समझाये कि "हम बेवफा हरगिज ना थे । पर हम बयां कर ना सके" । लेकिन वह अफसोस जताने के अलावा और क्या कर सकती थी । बस एक ही ख्याल दिमाग में उठता था "हम थे जिनके सहारे , वो हुए ना हमारे । डूबी जब दिल को नैया , सामने थे किनारे" । अमर प्रेम फिल्म का वह मशहूर गाना उसे याद आने लगा 
"मांझी जब
 नाव डुबोए उसे कौन बचाए । चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाए । सावन जो अगन लगाए उसे कौन बुझाए" । उसका दिल टूटकर चकनाचूर हो रहा था मगर यहां किसे परवाह है ? 

अक्षत का तो रोम रोम कह रहा था "हमसे क्या भूल हुई, जो ये सजा हमको मिली । अब तो चारों ही तरफ बंद है दुनिया की गली" पर उसकी बात कौन सुने ? उससे यह भूल अवश्य हुई थी कि उसने बिना अनुपमा की अनुमति के उसकी तस्वीर बना ली थी और तस्वीर भी ऐसी वैसी नहीं एकदम "नयूड" । इसके लिए वह मन ही मन गुनगुनाता रहता था "हमसे भूल हो गई हमको माफी दे दो" लेकिन माफी लायक काम नहीं था उसका । उसे अभी तक समझ में नहीं आ रहा था कि उसके सीमन की रिपोर्ट कैसे आई ? पर होनी को जो मंजूर होता है वही होता है । वह अनुपमा भाभी की नजरों से बिल्कुल गिर गया था , इसका मलाल उसे बहुत ज्यादा था । 

आम जनता हीरेन दा के अनुत्तरदायी आचरण के कारण थोड़ी असहज होने लगी थी । जो आदमी अदालत टाइम पर नहीं पहुंच पाए तो वह केस कैसे जिताएगा ? चारों ओर से खुसुर-पुसुर की आवाजें आने लगी थीं तो जज साहब भी तैश में आ गये और सरकारी वकील से कहने लगे 
"वकील साहब, आप अपना पक्ष रखिए । बचाव पक्ष के वकील को अब तक आ जाना चाहिए था । कोर्ट किसी का इंतज़ार करने के लिए नहीं बनी हैं । अब ये आरोपी स्वयं अपना बचाव करेंगे । आधे घंटे से इंतजार हो रहा है उनका । ये कोर्ट है कोई धर्मशाला नहीं है । शुरू कीजिए आप तो" । उनके चेहरे से गुस्से की ज्वाला निकल रही थी । 

जैसे ही जज साहब ने यह बात कही , सरकारी वकील नीलमणी त्रिपाठी खुश हो गए और अपने स्थान पर से उठकर बहस करने के लिए खड़े हो गए । इतने में दूर से आवाज आई 
"रुकिए जज साहब , मैं आ गया हूं । बस ऑटो का पेमेंट करके आ ही रहा हूं" । और इतने में हीरेन दा अपनी लहराती जुल्फें, मुंह में ठुंसे दो चार पानों के साथ अदालत में आ धमके । 
"आप कौन" ? जज साहब तेज आवाज में बोले 
"हुजूर ! बन्दे को हीरेन कहते हैं वैसे लोग हमें सम्मान से "हीरेन दा" कहते हैं । मैं सक्षम, अनुपमा और अक्षत की ओर से इस केस में उपस्थित हुआ हूं" । हीरेन दा अपनी जुल्फों को झटका कर ऊपर की ओर करते हुए और उनमें उंगली फिराते हुए बोले । साथ में उनके बोलने से दो चार छींटे पान के सरकारी वकील नीलमणी त्रिपाठी के कोट पर जा पड़े । इससे त्रिपाठी जी भड़क गये । 
"योर ऑनर ! ये जनाब कौन हैं ? क्या इन्होंने वकालत की डिग्री ली है और क्या इनका रजिस्ट्रेशन बार में हो चुका है ? हमने तो सुना था कि ये एक जासूस हैं और एक जासूस अदालत में किसी केस में छानबीन तो कर सकता है मगर पैरवी नहीं कर सकता है । पहले इस बात का निर्णय हो जाए कि ये महाशय पैरवी कर सकते हैं या नहीं ? नीलमणी त्रिपाठी ने जहर उगलना शुरू कर दिया था । 
"ऑब्जेक्शन योर ऑनर ! मेरे काबिल दोस्त वकील साहब को यह भी पता नहीं है कि मैं कौन हूं और इस अदालत में पैरवी करने की योग्यता रखता हूं या नहीं ? तो इससे अधिक शर्मनाक स्थिति और क्या होगी ? वैसे तो मेरे काबिल दोस्त खुद को सबसे बढिया वकील मानते हैं और सारी जानकारी रखने का दंभ भी भरते हैं । मगर आज इन्होंने अपने अज्ञान का प्रदर्शन आखिर कर ही दिया" । 

कहकर हीरेन दा ने जेब से चांदी का एक पानदान निकाला और उसमें से एक गिलौरी निकाल कर जज साहब की ओर देखकर कहा "नोश फरमाइए हजूर । बड़ा स्पेशल पान है । बनारस वाले हरि भाई की दुकान से लाया हूं हजूर, इसीलिए तो लेट हो गया था" । हीरेन दा के लाल लाल होंठ जब मुस्कुराते थे तो लाल सुर्ख गुलाब जैसे लगते थे । मीना को उसके होंठ बड़े प्यारे लगते थे । मीना और हीरेन की आंखें चार हुईं तो दोनों के दिल में जोश की लहर दौड़ गई । 

हीरेन दा की इस हरकत पर जज साहब भड़क गए और उसे झिड़कते हुए बोले "ये अदालत है अदालत । समझे ! ये क्या बदतमीजी है ? यदि पान वान खाना है तो बाहर जाकर खाओ । यहां अदालत का डेकोरम तो बना रहने दो" । उनकी आंखों से चिंगारियां निकलने लगी थी । 
"हजूर ! ये कोई ऐसा वैसा पान नहीं है । यह तो चांदी के वर्क में लिपटा हुआ एक 'शरबती पान' है । इसमें पिपरमेंट है जिससे दिमाग ठंडा ठंडा कूल कूल रहता है । एक जज को अपना दिमाग एकदम ठंडा रखना चाहिए तभी वह आराम से केस की सुनवाई कर सकेगा । आपको तो इस पान की सख्त आवश्यकता है योर ऑनर । मेरा यकीन मानिए हुजूर , एक गिलौरी मुंह में लेकर बांयें गाल में दबा लीजिए और फिर देखिए कि क्या मजा आता है" ? 

हीरेन दा ने पान की एक गिलौरी जज साहब के सामने कर दी । चांदी के वर्क में लिपटी हुई उस गिलौरी के आकर्षण से जज साहब खुद को नहीं बचा सके और उन्होंने पान की गिलौरी लेने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ा दिया तो हीरेन दा ने पान की गिलौरी जज साहब को दे दी । जज साहब ने वह पान मुंह में ले लिया और जैसे ही उन्होंने मुंह बंद किया तो 'पिच्च' से एक फव्वारा उनके मुंह के अंदर फूट पड़ा और उन्हें ऐसे लगा जैसे उनके मुंह के अंदर ही अंदर शर्बत का एक झरना फूट पड़ा हो । 
"गजब, अद्भुत, अप्रतिम" । जज साहब के होंठ बुदबुदाने लगे । 

जज साहब को पान खाते देखकर सरकारी वकील नीलमणी त्रिपाठी बिदक गये "हुजूर ! आप भी किसकी बातों में आ गये ? ये कोई जासूस लग रहा है क्या ? यह तो एक बहरूपिया सा लग रहा है । आपने इसका पान भी खा लिया योर ऑनर  ! क्या पता उसमें इसने कुछ मिला रखा हो" ? सरकारी वकील ने चिंता प्रकट की । 

इससे पहले कि जज साहब कुछ बोलते हीरेन दा ने फिर से मोर्चा संभाल लिया और कहने लगे "योर ऑनर ! मेरे पास में एक दूसरा पान है जिसमें गुलकंद लगा हुआ है । सरकारी वकील साहब जिस तरह की अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे हैं उससे तो लगता है कि सरकारी वकील साहब की वाणी से मिठास गायब हो गई है । इसलिए इन्हें यह गुलकंद वाला पान खाना अति आवश्यक है । यह गुलकंद इनकी न केवल वाणी में मिठास घोल देगी अपितु इनकी सारी कड़वाहट खत्म कर देगी । इस पान में सौंफ और लोंग के साथ साथ इलायची भी है जो गला साफ करने और मुंह से सुगंध फैलाने के काम आती है । इसके अतिरिक्त थोड़ा कत्था लगा है जिससे होंठ लाल गुलाब से सुर्ख हो जाते हैं । हां, मैं अपने पान में चूना नहीं लगवाता हूं । अरे, हम वकील लोग वैसे भी चूना लगाने में माहिर होते हैं तो हम कैसे चूना लगवा सकते हैं ? क्यों हुजूर ! सही बात है ना" ? 

जज साहब हीरेन दा की बातों से बड़े खुश हुए और उसकी हां में हां मिलाते हुए बोले "सौ प्रतिशत सत्य बात कही है आपने" । फिर वे सरकारी वकील नीलमणी त्रिपाठी की ओर मुखातिब होकर बोले "वकील साहब, आप तो इतने पुराने वकील हैं । आपको अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना आना चाहिए । जासूस महोदय सही कह रहे हैं । इनके पान में जादू भरा हुआ है । जबसे मैंने यह पान खाया है तब से मेरे दिमाग में ए सी जैसी ठंडक आ रही है । आप भी ये पान खा लो, आपकी वाणी में भी मिसरी सी मिठास आ जाएगी" । जज साहब हाथ नचाकर बोले । 

मीना हीरेन दा की वाकपटुता देखकर स्तब्ध रह गई थी । सरकारी वकील का अब तक जो बोलबाला रहा था एक ही पल में हीरेन दा ने ध्वस्त कर दिया था । जज साहब अब हीरेन दा के फैन हो गये थे । हीरेन दा ने एक पान नीलमणी त्रिपाठी को दे दिया । उनके पास उस पान को खाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा था क्योंकि वे जज साहब की बात को टालकर जज साहब को अप्रसन्न नहीं करना चाहते थे । 

"योर ऑनर ! मेरा नाम हीरेन्द्र कुमार चट्टोपाध्याय है । शॉर्ट में लोग मुझे हीरेन दा कहकर बुलाते हैं । मैंने आईआईटी दिल्ली से बी टेक और रवीन्द्र नाथ टैगोर विश्व विद्यालय से LLB की डिग्री ली है और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन में अपना पंजीयन करा रखा है । यह रही मेरी दोनों डिग्रियां और यह रहा मेरा रजिस्ट्रेशन कार्ड । इसके साथ साथ यह मेरा वकालतनामा भी है । अब तो मेरे काबिल दोस्त को मेरी पैरवी से कोई ऐतराज नहीं है" ? 

हीरेन दा के होंठ गोल गोल हुए और उनसे धीमी धीमी आवाज में "हमसे ना टकराना , हमसे है जमाना" गाने की धुन निकलने लगी । सरकारी वकील का मुंह देखने लायक था । बहस अभी शुरू भी नहीं हुई थी और मनोवैज्ञानिक बढत हीरेन ने ले ली थी । इससे नीलमणी त्रिपाठी और भी अधिक क्रुद्ध हो गया । उसकी आंखें चिंगारियां बरसाने लगीं । होंठ गाली देने को फड़कने लगे । सरकारी वकील की अभी से ऐसी हालत देखकर हीरेन दा की बांछें खिल गईं । 

हीरेन दा की बातों से सक्षम, अनुपमा और अक्षत में एक नई स्फूर्ति और ऊर्जा आ गई थी । उन्हें उम्मीद की किरणें दिखाई देने लगी थीं । 

(अगले अंक में आप पढेंगे कि सरकारी वकील किस तरह इन तीनों को अपराधी सिद्ध करता है ) 

श्री हरि 
15.6.2023 

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7 Comments

Abhilasha Deshpande

05-Jul-2023 03:16 AM

Nice

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Gunjan Kamal

03-Jul-2023 10:14 AM

Nice one

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Hari Shanker Goyal "Hari"

05-Jul-2023 09:44 AM

💐💐🙏🙏

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वानी

16-Jun-2023 07:20 AM

Nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

16-Jun-2023 09:35 AM

🙏🙏

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